श्रीमद्भागवत से ली गयी कृष्णभक्त सुदामा की सम्पूर्ण कथा,,,देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। परीक्षितजी महाराज शुकदेवजी से पूछते है अगर द्वारिका में की किसी भक्त पर कृपा हुई हो तो सुनाइए। शुकदेव जी कहते है राजन मैं आपको भगवान कृष्ण के परम भक्त सुदामाजी की कथा सुनाऊंगा। सुदामा कृष्ण के परम मित्र थे। ये ब्रह्मज्ञानी, विषयों से विरक्त, शांतचित्त और जितेन्द्रिय थे। लेकिन बहुत गरीब थे। लेकिन दरिद्र नही थे।लोग सोचते हैं की जो गरीब हैं तो दरिद्र हैं पर गुरुदेव कहते हैं नही! नही! दरिद्रता और निर्धनता में अंतर हैं। भगवान का भक्त गरीब हो सकता हैं , निर्धन हो सकता हैं पर दरिद्र नही हो सकता। क्योंकि दरिद्र व्यक्ति वो हैं जिसके पास सब कुछ हो लेकिन संतोष न हो। शास्त्र की दृष्टि में दरिद्र वही हैं जिसके मन में सब कुछ होने पर भी संतोष नही हैं। सुदामा जी को एक समय का भोजन भी ठीक से नही मिलता था। घर में दीवार तो हैं पर छत का ठिकाना नहीं हैं। टूटे फूटे पात्र थे। 3 -3 दिन तक अपनी पत्नी के साथ भूखे रहते थे। लेकिन कभी भगवान को शिकायत नही की। सुदामा जी की पत्नी का नाम सुशीला था। सुशीला ने ए
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