मेरे_श्याम_के_आँसू
By वनिता कासनियां पंजाब
एक बार श्री कृष्ण को रोते देखकर गोपी श्री कृष्ण से रोने का कारण पूछती है!
उसी के उतर में श्री कृष्ण कहते हैं.....सुनो सखी जहाँ प्रेम है, वहाँ निश्चय ही आखों से आसुंओ की धारा बहती रहेगी!
प्रेमी का हृदय पिघलकर आँसुओं के रूप में निरंतर बहता रहता है और उसी अश्रु-जल, प्रेम जल में प्रेम का पौधा अंकुरित होकर निरंतर बढ़ता रहता है!
सखी! मैं स्वयं प्रेमी के प्रेम में निरंतर रोता रहता हूँ मेरी आँखों से निरंतर आँसुओं की धारा चलती रहती है!
मेरी इच्छा नहीं थी कि मैं बतांउ! पर तुमने बार-बार पूछा तुम क्यों रोते हो?
तो आज बात कह देता हूँ ! मैं अपने प्रेमी के प्रेम में रोता हूँ,
जो मेरा प्रेमी है, वह निरंतर रोता है और मैं भी उसके लिये निरंतर रोता हूँ!
सखी! जिस दिन मेरे जैसे प्रेम के समुद्र में तुम डूबोगी, जिस दिन तुम्हारे हृदय में प्रेम का समुद्र....
उसी प्रेम का समुद्र जो मेरे हृदय में नित्य-निरंतर लहराता रहता है, लहराने लगेगा,
उस दिन तुम भी मेरी ही तरह बस केवल रोती रहोगी!
सखी! उन आँसुओं की धारा से.जगत पवित्र होता है, वे आँसू नहीं है, वह तो गंगा यमुना की धारा है!उनमे डूबकी लगाने पर फिर त्रिताप नहीं रहते!
सखी! मैं देखता हूँ कि मेरी गोपी, मेरे प्राणों के समान प्यारी गोपी रो रही है,
मेरी प्रियतमा रो रही है, बस मैं भी यह देखते ही रोने लगता हूँ! मेरा हृदय भी रोने लगा जाता है!
मेरी प्रिया प्राणों से बढ़कर प्यारी गोपी जिस प्रकार एंकात में बैठकर रोती है,
वैसे ही मैं भी एंकात मैं बैठकर रोता हूँ, और रो रोकर प्राण शीतल करता हूँ यह है मेरे रोने का रहस्य।
कान्हा दीवानी वनिता...!!
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