गेंदा एक बहुत मशहूर फूल वाला पौधा है। इसे संस्कृत में झंडू और यूनानी में हमहमा/गुल-हजारा/सदबर्ग कहते हैं। By वनिता कासनियां पंजाब ? आयुर्वेद में यह तिक्त, कटु और काषय रस से युक्त गुणकारी औषधि के रुप में वर्णित है। यह रक्तसंग्राहक है और सूजन को दूर करता है। तथा ज्वर और मिर्गी रोग में लाभदायक है इसके पंचांग/पञ्चांग (जड़ी बूटियों के सम्बंध में पञ्चांग अर्थात पांच अंग से आशय फूल, पत्ती, तना, जड़ और बीज से होता है) का रस संधियों की सूजन और चोट तथा मोच के ऊपर लगाने से लाभ मिलता है।यूनानी चिकित्सा के मत के अनुसार यह ऊष्ण और खुश्क है। इसके पत्तों का रस कान में डालने पर कान का दर्द बंद होने का हो जाता है। इसको स्तन पर लगाने से की स्तन की सूजन बिखर जाती है। दाद के ऊपर इसके पत्तों का रस लगातार लगाते रहने से दाद नष्ट हो जाता है। इसके पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने पर दातों का दर्द फौरन दूर होता है। इसके फूल के बीज की गुंडी का चूर्ण करके शक्कर और दही के साथ देने पर दमा और खांसी में लाभ मिलता है।गेंदे के पत्तों का अर्क के सेवन से खूनी बवासीर में त्वरित लाभ मिलता है और रुका हुआ पेशाब खुल जाता है।विशेष वचन इसके अधिक सेवन से मनुष्य की काम शक्ति को नुकसान पहुंचता है।श्रोत ~ वनौषधिरत्नाकर (खण्ड तीन)गेंदे के पौधे के पञ्चांग का काढ़ा/अर्क सर्दी, ब्रोंकाइटिस, गठिया के उपचार उपयोगी होता है। फूलों में रूपांतरक गुण पाया जाता है और इनके रस का प्रयोग खूनी बवासीर के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियां कषैली होती हैं और इसकी चटनी का फोड़े, मांसपेशियों के दर्द और भीतरी त्वचा की सूजन के लिए लेपन किया जाता हैं। । इसकी पत्तियों और पुष्पों की पंखुड़ियों में आर्तवजनक, मूत्रवर्धक और कृमिहर गुण पाए जाते हैं। श्रोत ~ इन्डियन मेडिसिनल प्लांट्स एन इलस्ट्रेटेड डिक्शनरीpआधुनिक शोधों के अनुसार इसकी पत्तियों में क्वैर्सेटाजेटिन नामक एक द्रव्य (फ्लेवनॉल) पाया जाता है जिसमें एंटी-डायबिटीज अथवा मधुमेहरोधी, एंटी-एचआईवी, एंटी-कैंसर, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीवायरल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण पाए गए हैं।मतलब लेख लिखने के लिए शोध करते समय सोच रहा था कि शायद इसी वजह से समारोहों आदि की मंचसज्जा और सजावटों में गेंदे के फूलों का प्रयोग बहुतायत से किया जाता रहा है क्योंकि ऐसी जगहों पर हड़बड़ी और जल्दबाजी में अक्सर चोटें लग जाती हैं। फिर घरों में पूजा के लिए गेंदे का उपयोग। ऐसा लगता है जैसे चोटों के लिए "फर्स्ट एड किट" के रूप में इसे महत्व दिया गया। लेकिन समय के साथ वो लोग तो चले गए जो चोट देख कर कहते होंगे कि गेंदा की चटनी लगा लो; विज्ञान तो कहीं खो दिया आगे बढ़ने के अंधे लोभ में, बाकी बची रह गईं तो बस परम्पराएं और आडम्बर। दुखद!बस इतना ही! जल्दी मिलते हैं एक नए लेख/उत्तर के साथ। आपकी मोहब्बत हमारे लिए प्रेरणा है, इसलिए इनायत बनाए रखें।
गेंदा एक बहुत मशहूर फूल वाला पौधा है। इसे संस्कृत में झंडू और यूनानी में हमहमा/गुल-हजारा/सदबर्ग कहते हैं।
By वनिता कासनियां पंजाब ?
आयुर्वेद में यह तिक्त, कटु और काषय रस से युक्त गुणकारी औषधि के रुप में वर्णित है। यह रक्तसंग्राहक है और सूजन को दूर करता है। तथा ज्वर और मिर्गी रोग में लाभदायक है इसके पंचांग/पञ्चांग (जड़ी बूटियों के सम्बंध में पञ्चांग अर्थात पांच अंग से आशय फूल, पत्ती, तना, जड़ और बीज से होता है) का रस संधियों की सूजन और चोट तथा मोच के ऊपर लगाने से लाभ मिलता है।
यूनानी चिकित्सा के मत के अनुसार यह ऊष्ण और खुश्क है। इसके पत्तों का रस कान में डालने पर कान का दर्द बंद होने का हो जाता है। इसको स्तन पर लगाने से की स्तन की सूजन बिखर जाती है। दाद के ऊपर इसके पत्तों का रस लगातार लगाते रहने से दाद नष्ट हो जाता है। इसके पत्तों के काढ़े से कुल्ला करने पर दातों का दर्द फौरन दूर होता है। इसके फूल के बीज की गुंडी का चूर्ण करके शक्कर और दही के साथ देने पर दमा और खांसी में लाभ मिलता है।
गेंदे के पत्तों का अर्क के सेवन से खूनी बवासीर में त्वरित लाभ मिलता है और रुका हुआ पेशाब खुल जाता है।
विशेष वचन इसके अधिक सेवन से मनुष्य की काम शक्ति को नुकसान पहुंचता है।
श्रोत ~ वनौषधिरत्नाकर (खण्ड तीन)
गेंदे के पौधे के पञ्चांग का काढ़ा/अर्क सर्दी, ब्रोंकाइटिस, गठिया के उपचार उपयोगी होता है। फूलों में रूपांतरक गुण पाया जाता है और इनके रस का प्रयोग खूनी बवासीर के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियां कषैली होती हैं और इसकी चटनी का फोड़े, मांसपेशियों के दर्द और भीतरी त्वचा की सूजन के लिए लेपन किया जाता हैं। । इसकी पत्तियों और पुष्पों की पंखुड़ियों में आर्तवजनक, मूत्रवर्धक और कृमिहर गुण पाए जाते हैं। श्रोत ~ इन्डियन मेडिसिनल प्लांट्स एन इलस्ट्रेटेड डिक्शनरीp
आधुनिक शोधों के अनुसार इसकी पत्तियों में क्वैर्सेटाजेटिन नामक एक द्रव्य (फ्लेवनॉल) पाया जाता है जिसमें एंटी-डायबिटीज अथवा मधुमेहरोधी, एंटी-एचआईवी, एंटी-कैंसर, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीवायरल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण पाए गए हैं।
- मतलब लेख लिखने के लिए शोध करते समय सोच रहा था कि शायद इसी वजह से समारोहों आदि की मंचसज्जा और सजावटों में गेंदे के फूलों का प्रयोग बहुतायत से किया जाता रहा है क्योंकि ऐसी जगहों पर हड़बड़ी और जल्दबाजी में अक्सर चोटें लग जाती हैं। फिर घरों में पूजा के लिए गेंदे का उपयोग। ऐसा लगता है जैसे चोटों के लिए "फर्स्ट एड किट" के रूप में इसे महत्व दिया गया। लेकिन समय के साथ वो लोग तो चले गए जो चोट देख कर कहते होंगे कि गेंदा की चटनी लगा लो; विज्ञान तो कहीं खो दिया आगे बढ़ने के अंधे लोभ में, बाकी बची रह गईं तो बस परम्पराएं और आडम्बर। दुखद!
बस इतना ही! जल्दी मिलते हैं एक नए लेख/उत्तर के साथ। आपकी मोहब्बत हमारे लिए प्रेरणा है, इसलिए इनायत बनाए रखें।
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